अंधेरों का दुशाला
मिट्टी को मेरी ओढ़े
अपनी सिलवटों के बीच
खुद ही सिमटता चला गया
और कुछ झलकती
परछाइयों की सरसराहट,
सरकती हुई
इन सिलवटों में
गुम होती चली गयी,
मेरी नज़रों में सोई हुई
सुबह के कुछ आंसू
आँखों के किनारों से छलक पड़े|
देखो तो सही!
पूरब की पेशानी से उगती
मखमली रोशनी के उस टुकड़े ने
हरियाली के हसीन चेहरे पर
यह कैसी शबनम बिखेर दी है?
शाम के वक़्त
जो शाम के प्याले में भरकर
अँधेरी रात के नशीले होंठों का
जादूई जाम बना करती है|
-मीना चोपड़ा
मिट्टी को मेरी ओढ़े
अपनी सिलवटों के बीच
खुद ही सिमटता चला गया
और कुछ झलकती
परछाइयों की सरसराहट,
सरकती हुई
इन सिलवटों में
गुम होती चली गयी,
मेरी नज़रों में सोई हुई
सुबह के कुछ आंसू
आँखों के किनारों से छलक पड़े|
देखो तो सही!
पूरब की पेशानी से उगती
मखमली रोशनी के उस टुकड़े ने
हरियाली के हसीन चेहरे पर
यह कैसी शबनम बिखेर दी है?
शाम के वक़्त
जो शाम के प्याले में भरकर
अँधेरी रात के नशीले होंठों का
जादूई जाम बना करती है|
-मीना चोपड़ा
15 comments:
thanks if you share this poem with me.
i have read and feel the motiong of this poem in my vision all is colourful.
regards
yogendra kumar purohit
M.F.A.
BIKANER,INDIA
Bahut sundar. Sara drashya aankhon ke saamne tairne laga.
आपकी रचना पढ़ कर मन गदगद हो गया बधाई हो।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
////////////////////
Dear Meena Ji,
Thanks for dropping your so valualbe words on my blog. just going through your blogs and wanna appreciate and congratulate your efforts towards litrary work and achievement. really all are praiseworthy.
with regards
seema gupta
मीना जी,
सबसे पहले तो आपका हृदय से धन्यवाद करती हूँ ...आप आयीं मेरे ब्लॉग पर और मेरा हौसला बढाया...
उससे भी ज्यादा ख़ुशी की बात यह हुई कि आप भी कनाडा में ही रहती हैं...
आज बहुत देर तक आपके ब्लॉग में विचरण करती रही हूँ...बहुत ही ज्यादा ख़ुशी हुई आपसे मिल कर...
सभी कवितायें अपने आप में रत्न हैं...
आपका आभार ...
wow...!!!
aapkaa blog bhi hai meenaa ji......!!!!!!!!!!!!!!
abhi hi pataa lagaa...
bahut sundar bhav . badhai!!
इन्द्रधनुषी "दुशाला" बहुत सुंदर, बहुत खूब तथा मार्मिक - बधाई
esa lagta hai jaise aapki kalam aapke man ke vicharon ko ukerti jati hai,rukti nahin,jaise uski samajh main aa raha ho sab,kighar mudna hai ,lahrana hai hawa main ya ki doob jana haiuddam lahron ke neeche.goya ra pratap ke chetak ki tarah.bahut khoob .sadhuvad.
अंधेरों का दुशाला
मिट्टी को मेरी ओढ़े
अपनी सिलवटों के बीच
खुद ही सिमटता चला गया
और कुछ झलकती
परछाइयों की सरसराहट,
सरकती हुई
इन सिलवटों में
गुम होती चली गयी,
wah
wah
wah
bahut hi badiya
kavita mein shaj v sunder sabdo ke khubsurat sayojan se aapne jo marmik v gahan anubhuti kavita ko pradan ki hai wah bahut hi vaishistya hai .....bahut hi umdaa
इन्द्रधनुषी दुशाला - बहुत खूब - बधाई
इन सिलवटों में
गुम होती चली गयी,
मेरी नज़रों में सोई हुई
सुबह के कुछ आंसू
आँखों के किनारों से छलक पड़े|
बहुत खूब - बधाई!!
मीना जी, आपकी कविताएं पढ़ी और सुनीं। गहरी संवेदनाओं से पगी आपकी ये कविताएं हृदय को स्पर्श करने में सक्षम हैं, आप अपनी कुछ कविताएं मेरे ब्लॉग "गवाक्ष" (www.gavaksh.blogspot.com )के लिए अपने चित्र और संक्षिप्त परिचय के साथ दें तो मुझे खुशी होगी।
सुभाष नीरव
देखो तो सही!
पूरब की पेशानी से उगती
मखमली रोशनी के उस टुकड़े ने
हरियाली के हसीन चेहरे पर
यह कैसी शबनम बिखेर दी है?
bemisaal.....
Post a Comment