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"My art is my search for the moments beyond the ones of self knowledge. It is the rhythmic fantasy; a restless streak which looks for its own fulfillment! A stillness that moves within! An intense search for my origin and ultimate identity". - Meena

Meena Chopra - Poetry and Art

Saturday, 12 March 2011

दुशाला

अंधेरों का दुशाला
मिट्टी को मेरी ओढ़े
अपनी सिलवटों के बीच
खुद ही सिमटता चला गया
और कुछ झलकती
परछाइयों की सरसराहट,
सरकती हुई
इन सिलवटों में
गुम होती चली गयी,
मेरी नज़रों में सोई हुई
सुबह के कुछ आंसू
आँखों के किनारों से छलक पड़े|

देखो तो सही!
पूरब की पेशानी से उगती
मखमली रोशनी के उस टुकड़े ने
हरियाली के हसीन चेहरे पर
यह कैसी शबनम बिखेर दी है?
शाम के वक़्त
जो शाम के प्याले में भरकर
अँधेरी रात के नशीले होंठों का
जादूई जाम बना करती है|

-मीना चोपड़ा

15 comments:

yogendra kumar purohit said...

thanks if you share this poem with me.
i have read and feel the motiong of this poem in my vision all is colourful.
regards
yogendra kumar purohit
M.F.A.
BIKANER,INDIA

kailash c sharma said...

Bahut sundar. Sara drashya aankhon ke saamne tairne laga.

डॉ० डंडा लखनवी said...

आपकी रचना पढ़ कर मन गदगद हो गया बधाई हो।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
////////////////////

seema gupta said...

Dear Meena Ji,

Thanks for dropping your so valualbe words on my blog. just going through your blogs and wanna appreciate and congratulate your efforts towards litrary work and achievement. really all are praiseworthy.

with regards

seema gupta

स्वप्न मञ्जूषा said...

मीना जी,
सबसे पहले तो आपका हृदय से धन्यवाद करती हूँ ...आप आयीं मेरे ब्लॉग पर और मेरा हौसला बढाया...
उससे भी ज्यादा ख़ुशी की बात यह हुई कि आप भी कनाडा में ही रहती हैं...
आज बहुत देर तक आपके ब्लॉग में विचरण करती रही हूँ...बहुत ही ज्यादा ख़ुशी हुई आपसे मिल कर...
सभी कवितायें अपने आप में रत्न हैं...
आपका आभार ...

manu said...

wow...!!!

aapkaa blog bhi hai meenaa ji......!!!!!!!!!!!!!!

manu said...

abhi hi pataa lagaa...

Prem Farukhabadi said...

bahut sundar bhav . badhai!!

Anonymous said...

इन्द्रधनुषी "दुशाला" बहुत सुंदर, बहुत खूब तथा मार्मिक - बधाई

Anonymous said...

esa lagta hai jaise aapki kalam aapke man ke vicharon ko ukerti jati hai,rukti nahin,jaise uski samajh main aa raha ho sab,kighar mudna hai ,lahrana hai hawa main ya ki doob jana haiuddam lahron ke neeche.goya ra pratap ke chetak ki tarah.bahut khoob .sadhuvad.

Unknown said...

अंधेरों का दुशाला
मिट्टी को मेरी ओढ़े
अपनी सिलवटों के बीच
खुद ही सिमटता चला गया
और कुछ झलकती
परछाइयों की सरसराहट,
सरकती हुई
इन सिलवटों में
गुम होती चली गयी,


wah
wah
wah
bahut hi badiya
kavita mein shaj v sunder sabdo ke khubsurat sayojan se aapne jo marmik v gahan anubhuti kavita ko pradan ki hai wah bahut hi vaishistya hai .....bahut hi umdaa

Anonymous said...

इन्द्रधनुषी दुशाला - बहुत खूब - बधाई

Prem Farukhabadi said...

इन सिलवटों में
गुम होती चली गयी,
मेरी नज़रों में सोई हुई
सुबह के कुछ आंसू
आँखों के किनारों से छलक पड़े|

बहुत खूब - बधाई!!

सुभाष नीरव said...

मीना जी, आपकी कविताएं पढ़ी और सुनीं। गहरी संवेदनाओं से पगी आपकी ये कविताएं हृदय को स्पर्श करने में सक्षम हैं, आप अपनी कुछ कविताएं मेरे ब्लॉग "गवाक्ष" (www.gavaksh.blogspot.com )के लिए अपने चित्र और संक्षिप्त परिचय के साथ दें तो मुझे खुशी होगी।
सुभाष नीरव

mridula pradhan said...

देखो तो सही!
पूरब की पेशानी से उगती
मखमली रोशनी के उस टुकड़े ने
हरियाली के हसीन चेहरे पर
यह कैसी शबनम बिखेर दी है?
bemisaal.....

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