VISUAL ARTS, POETRY, COMMUNITY ARTS, MEDIA & ADVERTISING
"My art is my search for the moments beyond the ones of self knowledge. It is the rhythmic fantasy; a restless streak which looks for its own fulfillment! A stillness that moves within! An intense search for my origin and ultimate identity". - Meena
Tuesday, 22 December 2009
वक़्त - waqt
एक पिघलता सूरज देखा है मैंने
तुम्हारी आँखों के किनारे पर।
कभी देखा है किनारों से पिघलता रंग
गिरकर दरिया में बहता हुआ
और कभी,
दरिया को इन्हीं रंगों में बहते देखा है
देखा है जो कुछ भी
बस बहता ही देखा है।
-Meena Chopra
ek pighaltaa suuraj dekhaa hai maine
tumhaarii aankho.n ke kinaare par!
kabhii dekhaa hai
kinaro.n se pighaltaa rang
gir– gir ke dariyaa mei.n bahataa hua
aur kabhii
dariyaa ko inhii rango.n mei.n bahte dekhaa hai
dekhaa hai jo kuCh bhii
bas bahataa hii dekhaa hai!
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4 comments:
मीना जी... बहुत सुन्दर रचना है, बधाई। मुझे पढ़कर बस यह कहने का मन किया कि यह “कविता “ है न भाषण, न सन्देश, न विचार, न वाद, pure 24 carat कविता। वह कविता जो गुलज़ार सहब लिखते है, वह जो गद्यकार होते हुए निर्मल वर्मा जी लिखते रहे।
गुलशन
मीना जी
बहुत सुन्दर रचना है...
Bahut bahut dhanyawaad.
bahut sunder.....aapki hi tarah
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