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"My art is my search for the moments beyond the ones of self knowledge. It is the rhythmic fantasy; a restless streak which looks for its own fulfillment! A stillness that moves within! An intense search for my origin and ultimate identity". - Meena
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7 comments:
अच्छी कवितायें हैं।
कृपया वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें। यह न केवल मेरी उम्र के लोगों को तंग करता है पर लोगों को टिप्पणी करने से भी हतोत्साहित करता है। आप चाहें तो इसकी जगह कमेंट मॉडरेशन का विकल्प ले लें।
behad sunder..मन की सीप में उतरें
और मोती हो जाएँ।
कलम ने उठकर
चुपके से कोरे कागज़ से कुछ कहा
और मैं स्याही बनकर बह चली
behad achchi lagi.
nice poem.. its sound of poetry freedom by your inner poetry sound..thanks..
चुपके से कोरे कागज़ से कुछ कहा
और मैं स्याही बनकर बह चली
बोहोत सुन्दर Meena पूरी शाइरी लाजवाब हॆ
ऎसे ही ग़ालिब ने भी कहा था
आते हॆं ग़ॆब से ये मज़ामीन ख़याल में
ग़ालिब सरीर ख़ामे नवाए सरोश हॆ
और मैं स्याही बनकर बह चली
मधुर स्वछ्न्द गीत गुनगुनाती,
उड़ते पत्तों की नसों में लहलहाती।
मन की भावनाओं को
शब्द दे पाने की कठिन प्रक्रिया को
बहुत ही सहज काव्य रूप दिया आपने ....
स्वयं ही गुनगुनाती हुई
खूबसूरत नज़्म ...
मुबारकबाद .
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