Wah dhuaan—dhuaan
kyuon hai?
miTTIii johathalii semerii lag kar
badal jaatii thii
ek aise KshN mein
Jiska na to koi aadi thaa
na hii ant
Usii miiTTI se uThhata jo aaj
Wah dhuaan kyon hai?
-Meena Chopra
उठता है मिट्टी के
अन्तःकरण से
वह धुआँ धुआँ क्यों है?
मिट्टी जो मेरी
हथेली से लग कर
बदल जाती थी
एक ऐसे क्षण में
जिसका न कोई आदि था
न ही अन्त।
उसी मिट्टी से
उठता है जो आज
वह धुआँ क्यों है?
-मीना चोपडा
Drawing by Meena Chopra
8 comments:
जब से दुनिया बनी हॆ बदी ऒर नेकी ( राम ऒर रावन की लड़ाई) की जंन्ग जारी हॆ ऒर जारी रहेगी जबतक इनसान का Conscience ज़िनदा हॆ। नेकी हमेशा बदी पर ग़ालिब आति हॆ।
ये धुआं इसी जंन्ग से उठता हॆ।
आप की शाइरी मॆं बड़ी गॆहराई, खयाल मे नज़ाकत ऒर खूबसूर्ती हॆ।छोटी सी रचना में बड़ी बात केहदी। .
अनील कुमार सिन्घ का भी कमेंट बेहतरीन .हॆ।
उठता है जो मिट्टी के अंतःकरण से ,
वो धुआँ नही गुबार है.
ये इस धरती माँ की,
अपने बचों से दर्द भरी पुकार है.
Soil wants a unique shape.
Let it free.
Let it leave with smoke.
Let's see what will happen
with their fusion.
It happens at times.
We become a mere spectator.
Nothing is in our hand.
We can only watch and wait for result.
अच्छी कविता है। हिन्दी में ही लिखिये। यदि केवल हिन्दी में ही लिखने की सोचें तो अपने चिट्ठे को हिन्दी फीड एग्रगेटर के साथ पंजीकृत करा लें। इनकी सूची यहां है।
कृपया वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें। यह न केवल मेरी उम्र के लोगों को तंग करता है पर लोगों को टिप्पणी करने से भी हतोत्साहित करता है। आप चाहें तो इसकी जगह कमेंट मॉडरेशन का विकल्प ले लें।
Wow! The smoke.What a thoghtfull expession.This smoke has many shades like a jade. War, anger, enmity, restlessness and suffocation. Kepp your pen in motion.
Best regards from NORWAY
Masood munaver
mitti jo mere hath sr lagkar' bahut sundar.
Meena Ji,
Bahut khoob. Usi ke antahkaran se dhuaan uth sakta hai jahan kisi ke liye apna Dil jalane ki gunjaaish ho.
Ek SAMVEDANSHEEL Kavita ke liye Bahut-Bahut Mubaraqbaad.
मीना जी सुकून मिला आपको पढ़कर .....!!
chintan parak abhivyakti.
- vijay
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