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"My art is my search for the moments beyond the ones of self knowledge. It is the rhythmic fantasy; a restless streak which looks for its own fulfillment! A stillness that moves within! An intense search for my origin and ultimate identity". - Meena

Meena Chopra - Poetry and Art

Monday, 7 March 2011

सर्द सन्नाटा

सुबह के वक़्त
आँखें बंद कर के देखती हूँ जब
तो यह जिस्म के कोनो से
ससराता हुआ निकल जाता है
सूरज की किरणे चूमती हैं
जब भी इस को
तो खिल उठता है यह
फूल बनकर
और मुस्कुरा देता है
आँखों में मेरी झांक कर

सर्द सन्नाटा

कभी यह जिस्म के कोनो में
ठहर भी जाता है
कभी गीत बन कर
होठों पे रुक भी जाता है
और कभी
गले के सुरों को पकड़
गुनगुनाता है
फिर शाम के
रंगीन अंधेरों में घुल कर
सर्द रातों में गूंजता है अक्सर

सर्द सन्नाटा

मेरे करीब
आ जाता है बहुत
बरसों से मेरा हबीब
सन्नाटा

-मीना चोपड़ा

2 comments:

Narendra Vyas said...

wah wah ! behad hee khoobsoorat bhaavanatmak abhivyakti..bahu achchhi lagi ye kavita..sadhuwaad. kabhi aakhar kalash ka bhee avalokan keejiye aur apni rachnaao ko bhee preshit kar anugrit kare..pranaam
http://www.aakharkalash.blogspot.com

Rajat Narula said...

मेरे करीब
आ जाता है बहुत
बरसों से मेरा हबीब
सन्नाटा...

its just brilliant... your writing is intense and interesting... very nice...

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