प्रकृति की लय पर
विचलित शब्दों ने
संवेदनाओं को प्रेरित किया,
नज़र में उट्ठे पानी की तरंगों में
भिगो दिया!
विचलित शब्दों ने
संवेदनाओं को प्रेरित किया,
नज़र में उट्ठे पानी की तरंगों में
भिगो दिया!
कई नए प्रतिबिम्ब उभरे
कई कहानियाँ भी-
कई कहानियाँ भी-
रूह का इस तरह से
पतझड़ के उड़ते सूखे पत्तों पर
एक नया नृत्य
और हवाओं पर थिरक-थिरक चलना —
पतझड़ के उड़ते सूखे पत्तों पर
एक नया नृत्य
और हवाओं पर थिरक-थिरक चलना —
जीवन का यह कलरव
कुछ अधूरा सा नहीं है क्या?
कुछ अधूरा सा नहीं है क्या?
(कविता संकलन "सुबह का सूरज अब मेरा नहीं है!")
1 comment:
Lagta hai morning me neend Bahut aati hai aur surf aati hai.
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