VISUAL ARTS, POETRY, COMMUNITY ARTS, MEDIA & ADVERTISING
"My art is my search for the moments beyond the ones of self knowledge. It is the rhythmic fantasy; a restless streak which looks for its own fulfillment! A stillness that moves within! An intense search for my origin and ultimate identity". - Meena

Meena Chopra - Poetry and Art

Thursday, 29 September 2011

आवर्तन


टेढ़े और तिरछे रास्तों
पर चलती लकीरें
ये, पुराने आयामों से निकल
उन्हीं में ढलती
ये लकीरें
परिधि के किसी
कोने में अटक
बिन्दु को अपने तलाशती
भटकती रहीं।
भटकती रहीं।

फिर देखा
गोल सा सूरज
टूट चुका था।
ज़हन में भर चुके थे टुकड़े।
चापों में बट चुकी थी
रोशनीप्पा चप्पा।
वक़्त में जमी और रुकी ये चापें
आज खड़ी हैं रूबरू मेरे
सिर्फ़ पत्थर ही पत्थर
दिखाई देते हैं।

आँखें चुभती हैं
जिस्म के हर कोने में।
दबी दबी
थर्राई हुई
इंतज़ार में तो बस
एक ही कि
कब इन चापों में
बँधी रोशनी पिघले?
लावा बनकर
ज़िंदगी के चक्के में
कुछ ऐसी घूमे
बस घूमती ही
चली जाए

-मीना चोपड़ा

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