झील से झांकते आसमान की गहराई में
बादलों को चूमती पहाड़ों की परछाईयां
और घने पेड़ों के बीच फड़फड़ाते अतीत के चेहरे
झरनो के झरझराते मुख से झरते मधुर गीत संगीत
हवाओं पर बिखरी गेंदे के फूलों की सुनहरी खुशबू
दूर कहीं सजदों में झुकी घंटियों की गूंज
बांसुरी की धुन में लिपट कर चोटियों से
धीमे—धीमे उतरती मीठी धूप।
पानी में डुबकियां लगाती कुछ मचलती किरणे
और उन पर छ्पक—छपक चप्पूओं से सांसे लेती
ज़िन्दगी की चलती नौका
रात की झिलमिलाहटों में तैरती चुप्पियों की लहरें
किनारों से टकराकर लौटती जुगनुओं की वो चमक।
उम्मीदों की ठण्डी सड़क पर हवाओं से बातें करती
किसी राह्गीर के सपनों की तेज़ दौड़ती टापें
पगडंडियों को समेटे कदमो में अपने
पहूंची हैं वहां तक—जहां मंज़िलों के मुकाम
अक्सों में थम गये हैं
झील की गहराई में उतरकर
नींद को थपथपाते हुए
उठती सुबह की अंगड़ाई में रम गये हैं।
*यह कविता मेरे बचपन और
जन्मस्थल नैनीताल से प्रेरित है।Audio of the above poem.
बादलों को चूमती पहाड़ों की परछाईयां
और घने पेड़ों के बीच फड़फड़ाते अतीत के चेहरे
झरनो के झरझराते मुख से झरते मधुर गीत संगीत
हवाओं पर बिखरी गेंदे के फूलों की सुनहरी खुशबू
दूर कहीं सजदों में झुकी घंटियों की गूंज
बांसुरी की धुन में लिपट कर चोटियों से
धीमे—धीमे उतरती मीठी धूप।
पानी में डुबकियां लगाती कुछ मचलती किरणे
और उन पर छ्पक—छपक चप्पूओं से सांसे लेती
ज़िन्दगी की चलती नौका
रात की झिलमिलाहटों में तैरती चुप्पियों की लहरें
किनारों से टकराकर लौटती जुगनुओं की वो चमक।
उम्मीदों की ठण्डी सड़क पर हवाओं से बातें करती
किसी राह्गीर के सपनों की तेज़ दौड़ती टापें
पगडंडियों को समेटे कदमो में अपने
पहूंची हैं वहां तक—जहां मंज़िलों के मुकाम
अक्सों में थम गये हैं
झील की गहराई में उतरकर
नींद को थपथपाते हुए
उठती सुबह की अंगड़ाई में रम गये हैं।
*यह कविता मेरे बचपन और
जन्मस्थल नैनीताल से प्रेरित है।Audio of the above poem.
14 comments:
मीना जी,
बहुत सुंदर अभिव्यक्तियां हैं आपकी कवितायें !!
चित्र(पेंटिंग) भी अच्छे लगें - कविता और चित्र (पेंटिंग)एक दूसरे के पूरक भी हैं।
सादर,
अमरेन्द्र
http://amarendrahwg.blogspot.com/
पानी में डुबकियां लगाती कुछ मचलती किरणे
और उन पर छ्पक—छपक चप्पूओं से सांसे लेती
ज़िन्दगी की चलती नौका
रात की झिलमिलाहटों में तैरती चुप्पियों की लहरें
किनारों से टकराकर लौटती जुगनुओं की वो चमक।
bahut sunder bhav
Good one. And the paintings are simply ..... well, too good.
कहा ठीक जो वक्त के मिलते कई निशान।
प्राकृतिक सौन्दर्य का अच्छा किया बखान।।
बहुत खूब मीना जी।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
itne rang aur itne tevar
zindgi ki samagra anubhootiyon ko ek kaavyachitra me uker kar kamaal kar diya aap ne
aapko haardik badhaai !
Meena Ji ...ultimate....Waakai dil ko chhoo lene wali lines hai ....
Great Thanks ....
मीना जी.. बहुत अच्छी रचना है...
नैनीताल की चार पाँच यात्राओं ने हमारे दिमाग पर ही इतनी गहरी छाप छोड़ी है की जब भी लिखते है कोई चित्र वहाँ का अवश्य उभर आता है.. आप तो वहीं पली-बढ़ी है.. इसलिए आपकी रचनाएँ नैनीताल में नहाई हुई लगती है..
इतनी अच्छी लगी आपकी रचना कि उसे अपनी आवाज़ में पढ़ने का मन किया और उस को यहाँ करने का दुस्साहस कर रहा हूँ..
मेरी आवाज़ में नैनीताल तो नहीं होगा.. उसकी कसक ही आ गई हो तो मैं क्षमा के योग्य बन जाऊँ...
दुर्भाग्य से वह recording मैं इस comment में संलग्न नहीं कर पाया.. आप कोइ e-mail address दें तो उसपर mail करुंगा..
गुलशन
aap ki rachna achi hai.
बहुत ही शानदार रचनाएं
पानी में डुबकियां लगाती कुछ मचलती किरणे
और उन पर छ्पक—छपक चप्पूओं से सांसे लेती
ज़िन्दगी की चलती नौका....
वाह !
इन अलफ़ाज़ के बाद भला क्या रह जाता है
लिखने को , पढने को , महसूस करने को
काव्य में प्रतीकात्मकता की
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति .....
आपकी लेखन-क्षमता को सहज ही पाठक-मन तक
पहुंचाती हुई नायाब रचना
अभिवादन .
"सुबह का सूरज
अब मेरा नहीं "
को पढने की ख्वाहिश है
!!!???!!!
"पानी में डुबकियां लगाती कुछ मचलती किरणे
और उन पर छ्पक—छपक चप्पूओं से सांसे लेती
ज़िन्दगी की चलती नौका
रात की झिलमिलाहटों में तैरती चुप्पियों की लहरें
किनारों से टकराकर लौटती जुगनुओं की वो चमक।
उम्मीदों की ठण्डी सड़क पर हवाओं से बातें करती
किसी राह्गीर के सपनों की तेज़ दौड़ती टापें
पहूंची हैं वहां तक—जहां मंज़िलों के मुकाम
अक्सों में थम गये हैं"
लाजवाब
just by sheer chance i stumbled on this poem of yours thru facebook.it really catapulted me to nainital of that time.it was 1 am at night so decided to sleep but couldn,t.so i reconnected to net and wrote this.
its so well written that i am visualising it.its just superb.
jo bhee us samay ke nainital me raha hai woh is kavita ko jindagi ki saason ki tarah yadoo ki lifeline ke roop me istemal kar sakta hai.
deepak
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