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"My art is my search for the moments beyond the ones of self knowledge. It is the rhythmic fantasy; a restless streak which looks for its own fulfillment! A stillness that moves within! An intense search for my origin and ultimate identity". - Meena

Meena Chopra - Poetry and Art

Wednesday, 18 May 2011

क्या था वह?


Drawing by Meena chopra
सिलेटी शाम के
   ढलते रंग
     निःशब्द, निशाचरी, निरी रात
         उदासीन, तठस्थ सफेद चेहरे
        अपरिचित नाम
        अनजान शब्द
         खड़े थे रूबरू हमारे।

        क्या था वह —?
         शायद कोई अनुनाद —?
          जिसे तुम छू भर कर निकल गए
           और मैं देख भी न पाई।
            कोलाहल की धूल से भरी
            इन आँखों में
            केवल थी तो कालिख ही
         शोर की धुन्ध हमें टिकटिकी लगाये
        लगातार देखती थी |

        शायद एक शुरूआत के छोर पर      
            खड़े होकर हम
       दूर किसी अंत को समेटते हुए
      फिर एक बार
      एक नई आस के करीब
       बना रहे थे
        एक नया सा नसीब।
(Transcreated from Greying Evening
-Earlier published in "Ignited Lines")


2 comments:

mridula pradhan said...

शायद एक शुरूआत के छोर पर
खड़े होकर हम
दूर किसी अंत को समेटते हुए
फिर एक बार
एक नई आस के करीब
बना रहे थे
एक नया सा नसीब।wah.kitna sunder likhi hain aap.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीया मीना चौपड़ा जी
सादर सस्नेहाभिवादन !

शायद पहली बार पहुंचा हूं आपके यहां , अच्छा लगा ।

प्रस्तुत रचना प्रभावशाली है -
क्या था वह ?
शायद कोई अनुनाद …
जिसे तुम छू भर कर निकल गए
और मैं देख भी न पाई ।
कोलाहल की धूल से भरी
इन आंखों में
केवल थी तो कालिख ही …

बहुत ख़ूब !

हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

- राजेन्द्र स्वर्णकार

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