Drawing on paper by Meena |
लय और प्रलय के बीच की
दूरियों को नापता
साज़िश में वक्त की लिपटा
जल से सघन बादलों के भरा-भरा
चमकती बिजलियों में उलझकर
काँपता रहा एक रिश्ता।
बादलों से टपकता
धुन्ध में लटकता
बचता – बचाता
आ गिरा छिटक के
ज़मीं की गोद में
टूट के कहीं से
एक रिश्ता यूँही
भटकता– भटकता |
मौन हो गई है
ज़मीं मेरी
सूँघ के साँप रह गई है
जल-जल के धुआँ हो चुकी है
गति को अपनी ढूँढती है !
1 comment:
kamal ki kavita likhi hain....
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