Pastel on Paper by Meena |
सौंधी हवा का झोंका
मेरे आँचल में
मेरे आँचल में
फिसल कर आ गिरा।
वक्त का एक मोहरा हो गया।
और फिर
फ़िज़ाओं की चादर पर बैठा
हवाओं को चूमता
आसमानों की सरहदों में कहीं
वक्त का एक मोहरा हो गया।
और फिर
फ़िज़ाओं की चादर पर बैठा
हवाओं को चूमता
आसमानों की सरहदों में कहीं
जा के थम गया।
एहसास को एक नई खोज मिल गयी।
एक नया वजूद
एहसास को एक नई खोज मिल गयी।
एक नया वजूद
मेरी देह से गुज़र गया।
आसक्ति से अनासक्ति तक की दौड़,
भोग से अभोग तक की चाह,
जीवन से मृत्यु तक की
भोग से अभोग तक की चाह,
जीवन से मृत्यु तक की
प्रवाह रेखा के बीच की
दूरियों को तय करती हुई मैं
इस खोने और पाने की होड़ को
अपने में विसर्जित करती गई।
दूरियों को तय करती हुई मैं
इस खोने और पाने की होड़ को
अपने में विसर्जित करती गई।
न जाने वह चलते हुए
कौन से कदम थे
जो ज़मीन की उजड़ी कोख में
हवा के झोंके को पनाह देते रहे।
इन्हीं हवाओं के घुँघरुओं को
अपने कदमों में पहन कर
मैं जीवन रेखा की सतह पर
चलती रही — चलती रही —
कभी बुझती रही
जो ज़मीन की उजड़ी कोख में
हवा के झोंके को पनाह देते रहे।
इन्हीं हवाओं के घुँघरुओं को
अपने कदमों में पहन कर
मैं जीवन रेखा की सतह पर
चलती रही — चलती रही —
कभी बुझती रही
कभी जलती रही।
sau.ndhii hawaa kaa jho.nkaa
mere aa.nchal me.n
phisal kar aa giraa!
waqt kaa ek muharaa ho gayaa
aur phir
fizaao.n kii chaadar par baiThaa
hawaao.n ko chuumataa
aasmaano.n kii sarahado.n me.n kahii.n
jaa ke tham gayaa।
ehasaas ko ek naii khoj mil gayii.
ek nayaa wajood
merii deh se guzar gayaa।
aaskti se anaasakti tak kii dau.D,
bhog se abhog tak kii chah,
jiivan se mrityu tak kii
prawaha rekhaa ke biich kii
duuriyo.n ko tay kartii huii mai.n
1 comment:
bahut sundar kavita ...
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