"बहुत करीब था
किनारा उफ़क का
मेरी नज़रों से मिल चुका था
फ़िर भी न जाने क्यों
मैं दूर होती चली गई उससे।
निगाहों में बंद कुछ लम्हे
खुलते चले गये।
उड़ते चले गये
छू लेने को वही रंगों से धनुष के भीगा
सौर मंडल में डूबता इकलौता सहारा अपना
मुद्द्तों से खोया हुआ वो सितारा अपना।"
-मीना
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